Friday 10 June 2011

फ़ना.......



तेरी रूह से...मेरी रूह तक आती
ये सदा एक दिन मुझको
मुझसे फ़ना कर ले जाएगी

तू देखता ही रह जायेगा
उस पल को तब
जब न मैं होंगी
न मेरी आवाज़ तुझ तक जाएगी

ये बुतपरस्ती तेरी
ओ मेरे हमनवाज़
एक दिन तुझसे
मेरे होने का गुमां भी
छीन कर ले जाएगी

फारिग होकर ढूंढेगा
इस दुनिया में 'गुंजन' को जब
तब मेरी राख ही बस
तेरे दोनों हाथों में आएगी

तेरी रूह से....मेरी रूह तक आती
ये सदा एक दिन मुझको
मुझसे फ़ना कर ले जाएगी

गुंजन
12/5/2011
Thrusday



3 comments:

  1. यह क्या मायूसी क्यों छाई है आपकी इस नज्म में , अच्छा लगा मुबारक हो

    ReplyDelete
  2. it is too gud i like it a lot

    ReplyDelete
  3. धन्यवाद सुनील कुमारजी ...मन कुछ ख़राब था...सो ऐसे ही लिख दिया

    ReplyDelete