Thursday 28 July 2011

भीगी-सी इक तस्वीर.......



पहली बार जब तुम्हारी तस्वीर खिंची थी.........
मैंने अपनी diary के पन्ने में
तब पन्नों के साथ-साथ
रूह में भी उतर आई थी वो
पता नहीं क्यूँ ....?

रंग तो कभी भर ही नहीं पाई उसमें
क्या कच्चे...... क्या गीले........
_________

बस देखती ही रही थी तुम्हें
इन रंग उड़ी उदास काली आँखों से
उस फीके से चाँद की रौशनी में
हाँ तुम्हारे माथे पर गिरते बालों को ज़रूर संवारा था
मैंने अपनी pencil की नोक से
पर उसी पल चूम भी लिया था तुम्हारी पेशानी को
कि कहीं चुभ न गयी हो......वो कमबख्त नुक

भीगे होठों का गीलापन उभर आया था
तुम्हारे उस चार ऊँगल चौड़े माथे पर
जो आज तक उभरा हुआ है मेरी diary के पन्नों में भी
_________

जो इत्तेफाकन कहीं मिल जाओ
तो दिखाउंगी तुम्हें
पर नहीं....अब तक तो वो भीगे-से पन्ने सील भी गए होंगे
बहुत वक़्त भी तो बीत गया न........

गुंजन
२८/७/११

2 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना क्या कहने आपने अहसासों को कलम बंद किया है बधाई .....

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