Saturday 11 February 2012

दो सखियों की बात ..



मह - मह महकने लगी
मैं तुम संग .. सखी
चह - चह चहकने लगी
मैं बन कर चिड़ी
कभी इत .. कभी उत
मैं इतराने लगी
ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!


हाँ इक ख्वाब हूँ मैं
चाँद की कायनात हूँ मैं
इस जीवन की सबसे सुंदर
सौगात हूँ मैं
तेरे मन की
मेरे मन की
हर इक बात हूँ .. मैं

ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!

गुंजन .. ८/२/१२

Monday 6 February 2012

स्त्री



मर्मान्तक पीड़ा से गुज़रना पड़ता है
दिन-रात मुझे
क्यूंकि .. स्त्री हूँ मैं
हाँ इक गुनाह हूँ मैं
समाज़ की हर सही
और गलत ज़रूरतों को
पूरा करने वाला
एक अनचाहा .. गर्भ
गर्भ में पलूं
तो .. क्यूँ ?
और जो पालूँ
तो बेटा जनूं
वाह्ह री दुनिया !!!
अज़ब है ये दुनिया
माँ को पूजे
और बेटी को दुत्कारे

हहह !!!
गलीज़, लिजलिजी
दोगली दुनिया

गुंजन .. २/२/१२

Saturday 4 February 2012

स्त्री मन की पीड़ा



पीड़ा जब अति रूप धारण करती है
तब गर्भ से जन्मती हूँ .. मैं
शब्दों का एक गोला
नर्म, गुदाज़, लिजलिजा,
मेरे खुद के खून से सना हुआ
जिसे देखने भर से
घिन्नाने लगती है ये दुनिया
पर मेरा क्या
मैंने तो कोख में पाला है इसे
खुद के खून से सींचा है इसे
कभी मेरे मन की पीड़ा को
महसूस करके तो देखो
एक बार उसे जन्मके तो देखो
प्राण तज़ दोगे
वहीँ के वहीँ ..

शब्दों को जन्मना आसान नहीं होता
खासकर तब जब लहुलुहान हो जाती हैं
हमारी संवेदनायें
तब जब खून से लिसड़ जाती हैं
हमारी भावनायें ..

गुंजन .. ४/२/१२