Monday 11 April 2011

कितने बुरे हो तुम.....क्या तुम जानते हो ?




अब तुम मुझसे कहते हो
कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं

कितने बुरे हो तुम.....क्या तुम जानते हो ?
बेहद क्रूर और निर्दयी भी.....

कितनी आसानी से
दिल की हर बात कही थी तुमने
और सुनी थी मैंने -
चुपचाप, बिना एक साँस लिए

थम-सी गयी थी मैं
उस बीते हुए कल की तरह....
जो आपने अंदर न जाने कितनी
उथल-पुथल समेटे हुए- चुपचाप
हर आने-जाने वाले को देखता रहता है

समेट सा लिया था अपने-आप को
उस साँझ की तरह
जो रात के आ जाने पर
सिमट जाती है - अपने-आप में
खामोश सी, सकुचाई हुई
बिना एक शब्द बोले

हमेशा से ही थाम लेते हो- तुम
मुझे यूँ ही,
अपने शब्दों के जाल में
और मैं - निःशब्द, ठगी-सी
बंधती चली जाती हूँ
तुम्हारे मोह-पाश में.....

अब तुम मुझसे कहते हो
कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं

कितने बुरे हो तुम.....क्या तुम जानते हो ?
बेहद क्रूर और निर्दयी भी.....

गुंजन
9/4/2011

3 comments:

  1. i cant believe gunjan u have grown up to dat extent. u have made me so proud. be always like dat and keep doing dis gud work.i m always wid u dear.

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  2. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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  3. फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |

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