तुम ....... तुम्हारे ख्याल
महकते रहते हैं
हरदम
मेरे आस-पास
तो बोलो भला
तुम्हारे ख्यालों में लिपटी
फिर क्यूँ न महकूँ
मैं भी .....
_________
पारिजात के पुष्पों
से ही झड़ रहे थे
मेरे ख्वाब बीती रात गए
फिर क्यूँ तुमने इन्हें
शब्दों में गूँथ लिया
फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
मेरी बंद होती
पलकों पे सजा दिया
फिर क्यूँ ......?
गुन्जन
१०/९/११
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
ख्वाब ही तो आगाज़ हैं
ReplyDeleteशब्द परवाज़ हैं .... इनसे तुम हो ... प्रश्न कैसा ?
bahut sundar
ReplyDeleteपारिजात के पुष्पों
ReplyDeleteसे ही झड़ रहे थे
मेरे ख्वाब बीती रात गए
फिर क्यूँ तुमने इन्हें
शब्दों में गूँथ लिया
फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
मेरी बंद होती
पलकों पे सजा दिया
फिर क्यूँ ......? क्या कहू? समझ में नही आ रहा है... निशब्द कर दिया आपने....
फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
ReplyDeleteमेरी बंद होती
पलकों पे सजा दिया
फिर क्यूँ ......?
फिर क्यों..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति......
bahut sunder abhivyakti.
ReplyDeleteकल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पारिजात के पुष्पों
ReplyDeleteसे ही झड़ रहे थे
मेरे ख्वाब बीती रात गए
फिर क्यूँ तुमने इन्हें
शब्दों में गूँथ लिया
फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
मेरी बंद होती
पलकों पे सजा दिया
फिर क्यूँ ......?....
बहुत सुन्दर
bahut sundar bhaavavyakti.
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएं....
ReplyDeleteसादार...
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteख्वाब सजाये हैं ...ज़रूरी है इन का सजना..जीने में सहायक होते हैं न
ReplyDeleteGunjan jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
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