Sunday, 18 September 2011
उलझी हुई गुत्थियाँ
कभी कभी सोचती हूँ
तो लगता है कि
ये गुत्थियाँ उलझी ही रहें
तो बेहतर है
सुलझे हुए ज़ज्बात कभी कभी
उलझा जाते हैं
खुद ही को
एक खालीपन का एहसास
छोड़ जाते हैं हम ही में कहीं
कि अब क्या...?
कि अब क्या बचा है ....... नया करने को
बेहतर है इसकी उलझी गांठों में
ढुंढते रहें हम बीते दिनों को
..... अच्छे या बुरे
जैसे भी हैं - आखिर अपने तो हैं
जो ये भी सुलझ जायें
तो गांठ (जेब) में बचेगा क्या .... ?
.... निरा खालीपन !!
.... सूनापन !!
जो तुम्हारे आने से पहले था - जीवन में
या था भी ...... पता नहीं
गुन्जन
१६/९/११
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एक अजीब सी कशमकश का चित्रण किया है।
ReplyDeleteमेरे विचार में गुत्थियों का सुलझना जरुरी है आगे बढ़ने के लिए सुंदर भाव
ReplyDeleteबेहतर है इसकी उलझी गांठों में
ReplyDeleteढुंढते रहें हम बीते दिनों को
..... अच्छे या बुरे
जैसे भी हैं - आखिर अपने तो हैं ...
भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......
सुलझे हुए ज़ज्बात कभी कभी
ReplyDeleteउलझा जाते हैं
खुद ही को
एक खालीपन का एहसास
छोड़ जाते हैं हम ही में कहीं
कि अब क्या...?
....ज़िंदगी में अगर उलझनें न हों तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा. इन उलझनों को सुलझाना ही तो प्रेरणा देता है जीने की. सीधे और सपाट रास्तों पर गुजरना उबा देता है सफर से....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
जो तुम्हारे आने से पहले था - जीवन में
ReplyDeleteया था भी ...... पता नहीं...बहुत ही सुन्दर....
गुत्थियां सुलझने के लिए होती भी नहीं ... सुलझाने में लग जाओ तो वह सुलझ कर भी अजीबोगरीब सी शक्ल में होता है ... और कई लम्हें अपने होते होते रह जाते हैं ...
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteगहन कश्मकश ... सुलझाने के चक्कर में और उलझ जाती हैं ..
ReplyDeleteआज 19- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
सही कहा..गुत्थियां अनसुलझी ही रहे तो ज्यादा अच्छा .कश्मकश की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDelete.बहुत ही सुन्दर....
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