Tuesday, 3 January 2012
सुलगी सी एक कविता मेरे प्यार के जैसी .. १७ साला
पता नहीं क्यूँ
मन हो रहा है
इस वक़्त
एक सुलगी सी कविता लिखने का
कुछ - कुछ मुझ जैसी
मेरे प्यार के जैसी .. १७ साला
या एक coffee house में
एक ग्लास पानी के जैसी
जो मेरे होठों से लग कर
गुजरी थी .. तुमसे ही कहीं
पता नहीं क्यूँ
मन हो रहा है इस वक़्त
एक नीले रंग की साड़ी पहनने का
खारे पानी के जैसी .. नमकीन स्वाद वाली
जिसे पहने देख कभी तुम्हारा दिल करा था
मुझे गले लगाने का
तब शायद तुम्हारे गर्दन पर ठहरे
उस काले तिल को छू पाती मैं
अपनी सुलगी सांसों से तुम्हें .. ख़त्म कर पाती मैं
जिंदा रहने की ख्वाइश तुममें .. कहीं जगा पाती मैं
और खुद भी जी पाती
उम्र भर के लिए
बिना सुलगे ..
बिना बिखरे ..
गुंजन .. ३/१/१२
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शब्द शब्द बेजोड़ रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
आपकी भावपूर्ण प्रस्तुति अच्छी लगी.
ReplyDeleteभावों का अनुपम गुंजन करती आपकी
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा गुंजन जी.
ओह ..यह सुलगती सी ख्वाहिश ... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ...क्या ख्वाहिश है
ReplyDeleteयह १७ साला वाली भावना यूँ ही रहे ताउम्र...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteप्यारे एहसास और खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिये बधाई...
komal hrdaya ke komal ehsaas.bahut sundar.
ReplyDeleteबेहतरीन भाव संयोजन ...।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
दिल से लिखी है
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना सुलगती हुई सी कोई ख्वाइश बहुत खूब...
ReplyDeletewow....
ReplyDeletesulagti hui romantic rachna..
बेहतरीन भावो का संयोजन और सुंदर रचना...
ReplyDeleteआह ...मिल कर भी ना मिल पाने की तड़प ...आज भी भीतर कहीं जिन्दा सी हैं
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