क्या कभी महसूस किया है आपने ? .....प्यार की गर्माहट को, उसकी आंच, उसकी तपन को.....जिसके अलाव में सिंक कर दो दिल पकते हैं....और इन पके हुए दिलों से निकलने वाली सोंधी-सोंधी सी खुशबू में खींचे चले आते हैं - दो जिस्म, दो आत्मायें ।
उसी प्यार के अलाव में उस मासूम-सी, दिलकश लड़की का दिल सिंक कर पक गया था.......और उसकी आत्मा से उठी उस मीठी-मीठी सी खुशबू से, खिंचा चला आया था - "वो"....."वो" जिससे वो मासूम-सी, दिलकश लड़की प्यार करती थी ।
एक होता है न वो.....पागलों के सरीखा प्यार.....उसी की हंसी हँसना, उसको एक नज़र देख बावला-सा हो जाना, अच्छे-भले खुशदिल चेहरे पर, उसको उदास देख स्याही-सी पोत लेना, गर्म-तपती, लू भरी दोपहर में, रोज़ बिना किसी कारण उसके घर के सामने से गुज़रना - बिना ये सोचे की लोग क्या कहेंगे । पर नहीं उसे कोई लेना-देना नहीं था इस समाज से , इस दुनिया से क्यूंकि उस मासूम को तो प्यार हो गया था, 'प्यार'.....जिसके अलाव में उसका दिल क्या.....उसकी आत्मा तक सिंक गयी थी ।
पूरे २ साल बाद आया "वो" पूरे २ साल बाद, उसके बुलाने पर .....हाँ उस बावली के तो वो २ साल, उसका एक-एक दिन, एक-एक लम्हा किस कदर बिता, उसका पासंग-भर भी अंदाज़ा वो सिरफिरा नहीं लगा सकता था ।
तय हुए दिन और वक़्त पर मिला "वो".....उस निश्छल, स्नेही आत्मा से, एक पतली-सी सुनी, निर्जन पगडण्डी पर । जिसके दोनों ओर युक्लिप्तिस के लम्बे पेड़ , कतारबद्ध सेना के जवानों-से, एक-सी मुद्रा में खड़े थे । उस मासूम-सी लड़की के, अंतस से उठने वाली प्यार की सोंधी-सोंधी सी महक ने उन घमंडी युक्लिप्तिस के पेड़ों को भी, आलिंगनबद्ध-हो, स्तंभित कर दिया था । उसके प्यार ने उन मद-भरे पेड़ों का दिल भी जीत लिया था । तभी तो वो बिना एक साँस लिए.....निश्चल खड़े हो गए थे, उस तपस्विनी की सात्विकता देखकर ।
लड़के ने उस मासूम से बिना लाग-लपेट प्रश्न किया - "हाँ बोलो ! क्या कहना चाहतीं थीं, तुम मुझसे?" हारे..........थम-सी गयी वो अतृप्त इन दो लफ़्ज़ों को सुन कर । उसकी पुरजोर आवाज़ को सुन कर ।
कभी महसूस किया है आपने वो लम्हा जब - एक आवाज़, सिर्फ एक आवाज़ उतरती चली जाती है, आपकी रूह के अंदर- बर्फीली-सी, तीखी धार की तरह । आपके अंतस में गूंजने लगती है, सन्नाटे में गिरी किसी सुई की तरह । कभी महसूस किया है.........दिल के सूनेपन को, जो एक व्योम में उपजे खालीपन से भी ज्यादा तीखा होता है । उसी सूनेपन, खालीपन को भेदती वो दिलकश, पुरजोर-सी आवाज़ .......
हमेशा की तरह लड़की के पास कुछ नहीं था कहने के लिए, कुछ भी नहीं । हर बार की तरह शब्द फिर चूक गए थे उसके.....बाकि थे तो "आंसू"......पर उन आंसुओं की भाषा वो पगला क्या समझता, "वो" जो खुद ही से आशना न था, वो क्या समझ पाता.....उन रूहानी बातों को, उससे उपजने वाली रौशनाई को......"जिससे उसका जीवन संवर जाना था" । उन खामोश-सी, निश्चल आँखों की लिपि को, उसके चेहरे की प्यार भरी लुनाई को, उन "मानिनी" के मान को ......?
"वक़्त नहीं है मेरे पास, जो कहना है जल्दी कहो ।" तडाक से दो शब्द उस मानिनी के ह्रदय पर पड़े, जिसकी पीड़ा का दंश वो न झेल पाई.....और टूट कर वहीँ बिखर गयी.....कहने को तो कुछ था ही नहीं, क्या कहती भला वो ? लड़का जैसा आया था , वैसे ही कोरे ह्रदय वापस चला गया ।
उसकी प्यार भरी बिनाई उधर कर बिखर गयी । जिसको बिना था उसने एक-एक फंदा रोज़, नित-नए-कोरे सपनों के मोतियों को पिरोते हुए । जिस बंधन की चाह, उसके अंतस में कब-से थी........न जाने कब-से......उस बंधन की आस तक, अब ख़त्म हो गयी थी ।
बिन कहे, बिन सुने, सब ख़त्म हो गया था ...... सब कुछ ...... उसका अंतर तक ..... उसकी अंतरात्मा तक ।
गुंजन
27/4/2011
Wednesday
खुबसूरत अहसासों की बेहतरीन, भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई....
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा
ReplyDeleteभावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण
dekh le gunjan teri ye story padte padte kitchen me jo masala bhun raha tha wo jal gaya aur mujhe hosh hi nahi raha....isse bada sabut aur kya hoga ki tu kitna achcha aur sachcha likhti hai!!! luv u my dear, bahut sachchi se likha hai tune. hamesha aise hi likhna dil ki gehrayi se. i m proud of u sweety
ReplyDeleteबढ़िया लेखन .......कथानक कसा हुआ एवं शब्दों का चयन उत्तम ................आपसे अपेक्षा है कि कहानी के साथ ही उपन्यास लेखन की विधा की ओर प्रयास करेंगी ..........
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन की बधाई .......
" गुंजन जी
ReplyDelete" इस अर्थपूर्ण, भाव पूर्ण और प्रेम पूर्ण कहानी लेखन के लिए आपको बधाई!"
बहुत बढ़िया कहानी.....शब्द बहुत खूबसूरत......स्त्री-पुरुष दोनों के भावो का बारीकी से चित्रण ......स्वेटर की बुनाई को बहुत खूबसूरती से जोड़ा आपने यहाँ इस कहानी में......
ReplyDeleteगुंजन जी प्रेम के इस रूप और अस्तित्व से मिलाती आपकी रचना ॥ बहुत खूब
ReplyDeleteab intjar hai aapki ek kavita ka jo hamare liye bhi mufeed ho
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeletedi bahut achcha likha hai aapne maine to pehli bar jana ki aap itna achcha likh bhi leti hain di agar main kuch likhna chahun to main apna blog kaise likh sakti hun plz guide me & once again it si toooooooooooooooooo guuuuuuuuuuuuuuuud
ReplyDeleteमुझसे पूछा है की जुस्तजू क्या है
ReplyDeleteकप कपाते हुए होटो की मंजिल क्या
तेरे होने से मेरा होना है
मै नहीं जानता की तू क्या है
मुझसे पूछा है की जुस्तजू क्या है
...
" गुंजन जी"
ReplyDeleteआपको " बधाई!"
di maine aapki saari rachnayein padi sab ki sab behad khoobsurti se likhi gayi thi lekin adhiktar mein ek kasak hai jaise kisi se milne ki kasak, kisi ke mil kar door jane ki kasak,kisi ko apna banane ki kasak ya apni chahat ke kareeb hote hue bhi usse dur rehne ki kasak ............... hai na.
ReplyDeletehahahahaha..........क्या बात है baachae...बड़ी दूर तक पहुंच गयीं .....वेल मेरे आस पास सबब रीते -से ही लोग हैं .....और एक लिखने वाला ...अपने आस -पास से ही मोती चुन कर एक माला पिरोता है..........well पता चल गया की तूने वाकई पढ़ा है ..........thankuu Shweta
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..कहानी में खो गई .पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ और आते ही प्यार के सागर में खो गई .सुंदर अनुभूति ,एक एहसास जो हर लड़की के दिल में होता है ,उसकी तड़प ,भाव, पल पल का जीना मरना ,एहसास सब कुछ तो निचोड़ कर रख दिया है ....परन्तु दुखांत है ..शयद अक्सर प्यार का यही हस्र होता हो ..
ReplyDelete.....सुंदर कहानी के लिए बधाई .....
aap sabhi ka tahe dil se bahaut bahaut dhanyavad......
ReplyDeleteगज़ब का लिखा है अपने... शब्द चयन बहुत ही सुंदर है,,,
ReplyDeletesudar rachna..........
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