Monday 11 April 2011

आखिर, तुम क्यूँ नहीं समझते....?


अपनी बात को कहने का
हुनर होना चाहिए
हर किसी के पास
वो ज़हीन अल्फाज़ नहीं होते

वो शख्स जो बना था पत्थर का
उसपे किसी के आसूँ क्या असर करते

जो न आशना है खुद ही से आज तक
उसका दावा है कि वो
सफह-ए-हस्ती को जाना करते

ख़त्म हो गयी जिसके इंतज़ार में
ये ज़िन्दगी हैरां
न जाने क्यूँ अब वो
ज़िन्दगी का है साथ माँगा करते

ये बात नहीं है सिर्फ इस जन्म की
ये तो जन्मों का है नाता
तुम क्यूँ नहीं समझते
आखिर तुम क्यूँ इतने हैरां होते......?

गुंजन

5 comments:

  1. fantastic aakhir aap poetry ban hi gayi hum aapke safal future ke liye kaamna karte hai. hahhahhahhahha

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  2. जबरदस्त उम्दा रचना...

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  3. हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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