Thursday 21 April 2011

एक खुबसूरत पर...... उदास-सी शाम

शाम का धुन्दल्का रसोई से निकलते धुऐं में कुछ और गहराने लगा था । सड़क पर खेलते बच्चे अपनी माओं के पुकारने पर बेमन-से घरों को वापस जाने लगे थे । रसोई की खिड़की पर खड़ी लड़की की आंखें....घडी के काँटों सी किसी को तेज़ी से तलाशने लगीं ।

तभी माँ ने आवाज़ दी - टमाटर घिस दिया क्या ? लड़की ने घबरा के कहा - हाँ माँ बस हो ही गया टमाटर के साथ - साथ उसने अपना हाथ भी घिस लिया था.....नज़र खिड़की पर जो टिकी थी । माँ से नज़र बचा के.....सड़क से गुजरने वाले हर राहगीर को वो उचक कर देखती । कोने में खड़ी पान की गुमटी पर आने वाले हर शख्स में....वो 'उसको' खोजती ।

माँ ने फिर आवाज़ लगायी - सब्जी छौंक दी क्या ? लड़की ने फिर कहा- हाँ माँ । कसे हुए टमाटर को गर्म तेल की कढ़ाई में डालते हुए....उसने अपनी कुछ खून की बूंदें भी उसमें मिला दी थीं । हाथ कुछ ज्यादा ही घिस गया था । पट-पट की आवाज़ के साथ टमाटर कढ़ाई में भूनने लगा और साथ-ही-साथ उसका खून भी टमाटर के मसाले में एक-रस होने लगा । पर लड़की का सारा ध्यान कोने में सजी उस पान की गुमटी पर ही था । कुरते-पज़ामे में गुज़रते हर शख्स में वो 'उसको' खोजती ।

अचानक पान की उस छोटी सी गुमटी पर उसे इक सफ़ेद सा साया नज़र आया.....आह! लड़की के अंदर से इक आवाज़ आई.... और आंखें ख़ुशी के कारण कुछ और भर-सी आयीं । सफ़ेद कुरते-पज़ामे ने दुकानदार से इक cigratte मांगी....और माचिस भी....सुलगा के अपने होठों से लगा ली । सफ़ेद कुरते-पज़ामे में सजा वो देव-सरीखा मानुष...अचानक ही....उस cigratte के तम्बाकू के साथ-साथ...उसकी आत्मा को भी जलाने लगा ।

ऊँगली से टपकने वाले खून के साथ-साथ....लड़की की आँखों से टपकने वाला दर्द भी उस टमाटर के मसाले में घुलने लगे । तभी माँ ने फिर आवाज़ दी -सब्जी बन गयी क्या ? आंसू पोंछती लड़की ने धीमे से कहा -हाँ माँ । बस बन ही गयी ।

ऊँगली का दर्द अब बेमानी हो चला था.....सीने में उठते उस सोंधे - सोंधे से, बेतरतीब दर्द के आगे ।
उसने अपने आप से पूछा - क्यूँ ? आखिर क्यूँ होता है ...प्यार ऐसा ?

गुंजन
20/4/2011
Thursday

7 comments:

  1. i m totally speech less gunjan kamaal kar diya tumne....u really have made us proud dear. bahut achcha likha hai bahut achchi tarah express kia hai tumne ladki ke man ko jo her koi nhi kar pata.keep it up gunjan.... keep it up!!!excellent work.

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  2. संवेदनशील रचना , अच्छी लगी, बधाई......
    शायद आपका व्लाग पहली बार देखा, शुभकामनायें.....
    ( एक सुझाव वर्ड वरिफिकेसन हटा दें तो अच्छा रहेगा )

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  3. गुंजन जी, आपकी रचना बहुत अच्छी है और प्रेम की अधीरता को दर्शाती है!
    सच में प्रेम के इन विरह पलों उतनी ही व्याकुलता होती है जितने साँस के न मिलने पर होती है..............

    " नजर चुराके घरवालों से, मुझे देखने छत पर आती!
    अपनी खिड़की के परदे भी, थोड़ा थोडा वो खिसकाती!

    अपने अंतर्मन से क्रोधित , उसके दर्श को गुमसुम रहती,
    उसको जब तक देख नहीं ले, उसके मन में उलझन रहती,

    मुझसे मिलने पर नजरे वो, अपने होठो को मुस्काती!
    नजर चुराके घरवालों से, मुझे देखने छत पर आती! "

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  4. संवेदनशील रचना बधाई.....

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  5. aapne pyaar ka vo drashya dikha diya ki bilkul sab kuch samne hi ho raha hai thanks gunjan pyar ki is adhherta ki had ka gyan karane ka.

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  6. thanks to all mahh dear frnds.... :)

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  7. वाह जी, क्या कहने
    अच्छी रचना, मन को छू गई

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