Wednesday 27 July 2011

सज़दा........



सज़दे में जो उसके सर झुकाती हूँ
तो तेरे दर पर वो झुक जाता है
जो नज़रों में उसको भरती हूँ
तो तू अश्कों में ढल जाता है
जो हाथों से उसको छूती हूँ
तो तेरे वज़ूद में वो समा जाता है
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अब इसमें मेरी क्या ख़ता है - ए दोस्त
जब मुझे तुझ में ही अपना
माशुके-ख़ुदा नज़र आता है______

गुंजन
२५/७/११

1 comment:

  1. गहन शब्‍दों के साथ बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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