Wednesday 3 August 2011

मैंने नहीं चाहा .......



मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम मुझे यूँ
अपने वजूद में लिए-लिए घुमो
अपनी कल्पना में यूँ गढ़ो
अपने शब्दों में मुझे यूँ ढालो
अपने ख्यालों में........अपने घर-द्वार में
अपने-आप में मुझे यूँ जियो

मैंने नहीं चाहा......मैंने नहीं चाहा
________

मैंने तो हमेशा तुम्हारा सुख माँगा
हर हाल में सिर्फ तुम्हारा संग चाहा
अपने साथ.......
अपने-आप में तुम्हें जीना चाहा

पर तुम ही अटके रहे
उन गृह-नक्षत्रों की गूढ़ भाषा में
कभी किसी ग्रह की टेढ़ी द्रष्टि में
और कभी किसी ग्रह के गृह विस्थापन में

तो फिर आज क्यूँ
अपने हताश जीवन की दुहाई देते हो
क्यूँ ....... आखिर क्यूँ .......?

गुंजन
३/८/११

5 comments:

  1. ..... सरलता से सब कुछ कह दिया गुंजन जी

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  2. तो फिर आज क्यूँ
    अपने हताश जीवन की दुहाई देते हो
    क्यूँ ....... आखिर क्यूँ .......?

    विचारणीय प्रश्न..... गहन अभिव्यक्ति

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  3. बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हुई भावपूर्ण रचना।

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  4. Please remove this image, or credit its creator, as the image is copy right protected.
    the artist,
    william barnhart
    www.fineartist.com

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