व्याकुल हो ना कृष्णा
क्यूंकि चाह कर भी
वो कह नहीं पाते
.... जो कहना चाहते हो
तुम्हारा अन्तर्द्वंद रोक लेता है तुम्हें
आखिर कृष्ण हो ना ..
देवता बनने के लिए
कोई तो बलिदान देना ही होगा
वही दिया भी !!
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और राधा ..
इस धरा पर बरसों से
प्रेम का मूर्त रूप
तो भला उसकी आँखों में
व्याकुलता कैसी ?
अगर है भी ....... तो बस
अपने कृष्ण की अकुलाहट को सुनने की
उनके मौन को समझ पाने की
अब तो मौन तोड़ो कृष्णा ....... !!
.. २२/१०/११
कृष्ण के अनात्र्द्वंद को महसूस करती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमैं मौन कहाँ
ReplyDeleteमैं तो कर्तव्य के भंवर में हूँ
मैं भी चाहूँ बाहर आना
राधा के संग संग चलना
एक नाव मुझे गर भेज सको
तो मैं इस मझदार से निकल सकूँ
आठ्हूँ सिद्धि नवोनिधि के सुख
नन्द की गाय चराय बीता सकूँ ....
मौन की भाषा सिर्फ़ राधा ही तोजानती है।
ReplyDeleteबहुत ही बढिया अभिव्यक्ति ... ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
राधे राधे
वाह ...आनंद आ गया
ReplyDeleteवाह....सार्थक रचना
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति!!
ReplyDeletebah....
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