दो सखियों की बात ..
मह - मह महकने लगी
मैं तुम संग .. सखी
चह - चह चहकने लगी
मैं बन कर चिड़ी
कभी इत .. कभी उत
मैं इतराने लगी
ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!
हाँ इक ख्वाब हूँ मैं
चाँद की कायनात हूँ मैं
इस जीवन की सबसे सुंदर
सौगात हूँ मैं
तेरे मन की
मेरे मन की
हर इक बात हूँ .. मैं
ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!
गुंजन .. ८/२/१२
गहरे भाव।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteवाह ........आज भी सखी का साथ प्यारा लागे
ReplyDeleteखूबसूरत कविता गुंजन जी बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeletemah mah mahakne lagi....
ReplyDeletechah chah chahakni lagi..
naye tarah ka shabd sanyojan..
khubsurat rachna...
sundar rachna hai gunjab ji....accha laga aapko padhkar
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