Monday 22 August 2011

जन्मों की तृप्ति .......



ओ कृष्णा.........मेरे प्यारे कृष्णा

आज सबने तुम्हें
तुम्हारे जन्मदिन की बधाईयाँ
अपने-अपने तरीके से दीं
और मैं......
मैं पागल जाने कौन सा
अनोखा तरीका खोजने में ही लगी रही
ये भी न जान पाई कि
__________

मेरी एक धुंदली-सी छवि ही
तुम्हें खुशियों से
सराबोर कर देती है
मेरी श्वांस का इक झोंका ही
तुम्हें वन-उपवन के
सारे पुष्पों की खुशबु का
उपहार दे जाता है
मेरी पायल की इक झंकार ही
तुम्हें संगीत के सप्त सुरों से
मदालस कर देती है
मेरे इक पान के बीड़े के आगे
तुम्हारे लिए छप्पन भोग भी
बेस्वाद हो जाते हैं
मेरी पीतल की गगरी का
सिर्फ इक घूंट पानी ही
तुम्हारे लिए स्वाति नक्षत्र की
बूँद जैसा बन जाता है

ओ कृष्णा..........मेरे प्यारे कृष्णा
मैं पागल ये भी न जान पाई कि

मेरा बस होना भर ही
तुम्हारी अतृप्त आत्मा को
जन्मों की तृप्ति दे जाता है____

गुंजन
२२/८/११

7 comments:

  1. मेरा बस होना भर ही
    तुम्हारी अतृप्त आत्मा को
    जन्मों की तृप्ति दे जाता है............सही है ,आत्मा -परमात्मा मे क्या भेद .सुन्दर प्रस्तुति !!

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  2. बहुत ही खुबसूरत... रचना.... happy janmaastmi....

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  3. bas itna hi to sach hai, jaan liya - ab krishn ki murat dekho , sabkuch saakaar lagega

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  4. जिसने ये सच जान लिया फिर भेद कहाँ रहा।

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  5. काव्य में
    है कुछ ऐसा ,
    जो निश्छल है
    प्रभावशाली है
    मननीय है . . .

    अभिवादन .

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  6. बहुत ही खुबसूरत...
    आत्मा -परमात्मा मे क्या भेद....

    MITRA-MADHUR
    MADHUR VAANI
    BINDAAS_BAATEN

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  7. आपकी भाव भक्तिमय प्रस्तुति पढकर मन प्रसन्न हो गया.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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