Saturday, 16 April 2011
मैंने अंजलि में थाम रखे हैं , कुछ बीती हुई शामों के सुख .........
मैंने अंजलि में थाम रखे हैं
कुछ बीती हुई शामों के सुख....
तेरे घर में लगे गुडहल के पौधे से
बस एक फूल भर चुराने का सुख
वो तेरी गली से गुज़रते हुए तुझे
बस एक नज़र देख पाने का सुख
तेरे उस अमिट से नाम को उंगली से
धरती पे बार-बार लिख के मिटाने का सुख
वो अचानक सामने से तुझको आते देख
घबरा के थम सा जाने का सुख
तेरे चेहरे पे खिली मुस्कुराहट को - बेमतलब
यूँ ही, अपने होठों की हंसी बनाने का सुख
मैंने अंजलि में थाम रखे हैं
कुछ बीती हुई शामों के सुख.....
गुंजन
16/4/2001
Saturday
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