Thursday, 5 May 2011
'अक्स'
इन हाथों की लकीरें को देख कर ही तो-
जिन्दा हैं दोस्तों
वर्ना इस दुनिया में देखने को रखा क्या है ?
बुलाने से तो वो आता नहीं
ख्यालों में भी...'गुंजन'
शायद इन बेतरतीब-सी लकीरों में ही
उसका......'अक्स' नज़र आ जाये
उनके लिए जो कहते हैं ........किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते
किस्मत में ही तो नहीं है.......वो हमारे
ये तो बस एक शुबा पाल रखा है
देखा था उसे इन लकीरों में, कभी कहीं
इसीलिए आज भी
इन लकीरों में 'गुंजन' ने
उसके होने का नामुमकिन-सा
ख्याल पाल रखा है .....
गुंजन
6/5/2011
Thrusday
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too gud gunjan...its better now when u have extended it. ab zyada achchi lag rahi hai ye rachna. keep it up and keep d hinderence away who doesnt appriciates u.
ReplyDeletehahahhahah........aare yaar mujhe kisi ke appreciation ki zarurat nahin hai....tum log ho na...mere dost ..utna hi kafi hai...mujhe likhna pasand hai....aur bus yun hi kuch ban bhi jata hai.....isliye likh deti hun......well thankuu dear
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