Wednesday, 21 December 2011
मन
सब कहते हैं कविता सच का आइना होती है
पर पता नहीं क्यूँ
मुझे तो आज सुबह से बस इससे
भ्रम की बू आ रही है
हर गीत हर कविता झूठ में लिपटी हुई,
ये किसी निराशावादी दृष्टीकोण की दस्तक नहीं ....... पर सच यही है
lovelly lines .. awsumm ..
हह !! सब बकवास मीठा-मीठा, कोसा-सा
मन को लुभाने के लिए हम क्या क्या नहीं करते
कविता और कुछ शब्दों से खेलने से बेहतर
और भला हो भी क्या सकता है
ठण्ड से कंकपाती - इठी हुई सर्द उँगलियाँ ..
एक काला-सा keyboard
पागलों की तरह दौड़ते हुए कुछ बेतरतीब-से ख्याल
और उस पर ये मुआ facebook
ज़बरदस्ती मन को गूँथ-गूँथ कर सब उगलवा लेता है
काश ..काश की हम ना होते
काश ..काश की तुम ना होते
तो ना होता ये पागल-सा मन भी मेरा .. है ना !!
ओह्ह्ह !!!!!!!
कहीं आपने कुछ सुना तो नहीं .. ?
नहीं ना !!
गुंजन
२१/१२/११
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अपने आपसे बातें करना कितना दिलचस्प काम होता है...नहीं? बहुत रोचक रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
वाह! क्या बात है :)
ReplyDeleteसादर
कल 23/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ....
ReplyDeletehahaha....ye to ekdum naya andaaz hai...
ReplyDeletemano mann par vyang likha gaya ho...
कहीं आपने कुछ सुना तो नहीं .. ?
ReplyDeleteनहीं ना !!भावों से नाजुक शब्द......
अच्छी रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
बढ़िया व्यंग्य .....शब्द रचना अच्छी है
ReplyDeleteकविता को अगर हम अपने मन से जीते हैं तो ...इस से अच्छा कुछ और हो ही नहीं सकता...टिप्पणी पर लिखे गए शब्दों को नहीं सोचो ...आभार