Tuesday 10 January 2012

सुनो कई दिन से मन है .. एक चरस वाली cigrattee पीने का



सुनो
कई दिन से मन है
एक चरस वाली cigrattee पीने का
एक गहरा सा
आदिम कश लगाने का
मुहँ से लेकर फेफर्ड़ों तक
और फिर आत्मा तक
धुआं-धुआं हो जाने का

एक स्वप्निल .. ज़हर बुझी
दुनिया में जाने का

स्स्स्स .....

इश्क के आसमान से
एक गहरी छलांग लगाने का
धरा को छू फिर
एक लम्बी उड़ान लेने का

वहाँ तक जाने का
जहाँ इश्क के फूल खिला करते हैं
वहाँ जहाँ फ़रिश्ते गले मिला करते हैं
मर जाने का ... हाँ
तुम्हारे इश्क में फ़ना हो जाने का

सुनो !!
कई दिन से मन है
तुम्हारे सीने पे सर रख कर
सो जाने का ....

गुंजन .. ९/१/१२

13 comments:

  1. धुंआ हो जाओ ..पर 'चरस 'की सिगरेट से नहीं..
    आपकी कविता गहरे भाव दर्शाती है..
    kalamdaan.blogspot.com

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  2. wah!!! kya kashhh lagaya hai...

    bahut sundar

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  3. behtreen...............ultimate,writing.......awesome

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  4. सुना !!!!!!
    कई दिन से मन है
    तुम्हारे सीने पे सर रख कर
    सो जाने का ....

    खूबसूरत और कोमल एहसास ...

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  5. pahle to padker dimag hi sann reh gya phir jab aage gya to gehre ahsas mile.............badhai

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  6. behad khoobsoorat...kaash aapke man kii harek ichchhha poorii ho

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  7. me har gam ko dhuva me udana chahta hu aur aap khud dhuva hona chahti he kyon?

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  8. behtareen abhivyakti , achche shabdon kaa chayan

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  9. वाह बहुत खूब भावो को पिरोया है।

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  10. बहुत सुंदर भावो को व्यक्त किया है ...........

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  11. जब भी आपका मन पंछी उडान भरता है ..धरा और आसमां को एक कर देता है..प्यार की वादियों में सैर करता है..अनजाने से ख्वाब देखता है..कुछ खूबसूरत सा रच देता है..उड़ते उड़ते यह पंछी जिस शब्द पुष्प पर बैठता है..उसे कविता की ऐसी माला में पिरो देता है ..कि पढ़कर बरबस ही वाह निकलती है..पर हाँ..काश कि यह कश सिगरेट का नहीं होता..पर फिर भी प्रारंभ बड़ा रोचक बन पड़ा है..

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  12. बेहद सुन्दर रचना |

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