Sunday 13 November 2011

कृष्ण का अन्तर्द्वंद



व्याकुल हो ना कृष्णा
क्यूंकि चाह कर भी
वो कह नहीं पाते
.... जो कहना चाहते हो
तुम्हारा अन्तर्द्वंद रोक लेता है तुम्हें
आखिर कृष्ण हो ना ..
देवता बनने के लिए
कोई तो बलिदान देना ही होगा
वही दिया भी !!
__________

और राधा ..
इस धरा पर बरसों से
प्रेम का मूर्त रूप
तो भला उसकी आँखों में
व्याकुलता कैसी ?
अगर है भी ....... तो बस
अपने कृष्ण की अकुलाहट को सुनने की
उनके मौन को समझ पाने की

अब तो मौन तोड़ो कृष्णा ....... !!

.. २२/१०/११

9 comments:

  1. कृष्ण के अनात्र्द्वंद को महसूस करती अच्छी प्रस्तुति

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  2. मैं मौन कहाँ
    मैं तो कर्तव्य के भंवर में हूँ
    मैं भी चाहूँ बाहर आना
    राधा के संग संग चलना
    एक नाव मुझे गर भेज सको
    तो मैं इस मझदार से निकल सकूँ
    आठ्हूँ सिद्धि नवोनिधि के सुख
    नन्द की गाय चराय बीता सकूँ ....

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  3. मौन की भाषा सिर्फ़ राधा ही तोजानती है।

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  4. बहुत ही बढिया अभिव्‍यक्ति ... ।

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  5. बहुत सुंदर
    क्या कहने

    राधे राधे

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  6. वाह ...आनंद आ गया

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  7. वाह....सार्थक रचना

    नीरज

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  8. सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति!!

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