Wednesday 30 November 2011

प्रथम उड़न



एक दिन तो होना ही था तुम्हें पूर्ण
लगता है आज वो दिन आ गया
अपने खो गए आत्मबल को
आज मैंने भी .. पा लिया
जिस दिन तुम बिन जीने की कल्पना की थी
कुछ ऐसा ही अविकल .. बेचैन
निराशा से भरा पल था वो
_________

पर तुम्हारे लिए ..
निश्चित ही एक नयी उड़ान
असीम आकाश में तुम जैसे
नादान परिंदे की - प्रथम उड़न
चलो जो भी हो .. तुमने अपने पंख फैलाये तो
खुद को मुझ से मुक्त कर
अपने नये आयाम .. बनाये तो

जाओ खुश रहो .. जहाँ रहो .. जैसे भी रहो
सुखी , संतुष्ट और संपन्न रहो

गुंजन
३०/११/११

6 comments:

  1. निश्चित ही एक नयी उड़ान
    असीम आकाश में तुम जैसे
    नादान परिंदे की - प्रथम उड़न

    ....बहुत कोमल अहसास..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  2. भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही बहरीन शब्द अभिवयक्ति हमेसा की तरह.....

    ReplyDelete
  4. जाओ खुश रहो .. जहाँ रहो .. जैसे भी रहो
    सुखी , संतुष्ट और संपन्न रहो

    आपके मार्मिक शब्द हृदयस्पर्शी हैं.
    'गुंजन' कर रहे हैं कानों में.

    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,गुंजन जी.

    ReplyDelete
  5. waah.....bahut khub...
    kam shabdo mei man ki abhivyakti purn hai....

    ReplyDelete
  6. अभिव्यक्ति की असीम ऊँचाइयों की .....
    मन के सुकोमल स्पर्श ......

    ReplyDelete