Tuesday, 22 November 2011
अहसास
बेहतरीन अहसासों की गुनगुनाहट से
फिर भीग गयी मैं .... एक बार
मोती हमेशा देर से ही मिला करते हैं
तब जब उनकी उम्मीद नहीं होती
और जब ज़रूरत नहीं होती
..... तब माला बन
हमारे गले लगना चाहते हैं
अच्छा हो जो न समेटे इन्हें
ठंडी तासीर लिए
..... ये ठन्डे से मोती
हमसे हमारे जीवन की
ऊष्मा छीन ले जायेंगे
और हम फिर एक बार
स्तब्ध ... अवाक्
बिखर जायेंगे अपनी ही जमीं पर
अपने ही ख़ाली दामन को
समेटते हुए
बेरौनक
बेआवाज़
बेवजह
फिर उसी दहलीज़ को ताकते हुए
जो न हमारी हो सकी कभी
जो हम सी न बन सकी कभी
गुँजन
२०/१०/११
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अहसास की एक बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteलाजवाब!!
ReplyDeletesach me lajawab rachana hai...
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