Tuesday, 22 November 2011
हाँ वो इक ख्वाब ही तो है
इक ख्वाब ही तो हैं
जिनमें वो जब मन होता है
तब चला आता है
... चहलकदमी करते हुए
अब यहाँ से भी उसे
खाली हाथ लौटा दूँ
नहीं .. इतनी कमज़र्फ मैं तो नहीं
इक उसी की जुस्तजू में तो
रातों का इंतज़ार किया करती हूँ
कि कब ख्वाब आयें
और कब .. वो
जानती हूँ
कि ख्वाब कभी पूरे नहीं होते
______
हाँ वो इक ख्वाब ही तो है
चलता - फिरता ख्वाब
इसलिए उस मखमली ख्वाब को
ख्वाबों में ही जी लेती हूँ मैं
खुद भी इक अदना - सा
ख्वाब बन कर .....
गुंजन
११/१०/११ —
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत ही अच्छी.....
ReplyDeleteक्या बात है !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना|
ReplyDeleteमैम आप के शब्दों का चुनाव बहुत सुन्दर होता है|
bahut sundar rachana hai...
ReplyDelete