Tuesday 22 November 2011

प्यार का अंतहीन सफ़र ....



न सवालों का ज़वाब दो
न जवाबों से सवाल पूछो
अपने आप सारे प्रश्न चिन्ह
सिमट जायेंगे
और तुम फिर स्वतंत्र हो जाओगे
अपने आयामों को नापने के लिए
न बनो इस अंतहीन सफ़र के मुसाफिर
ये सफ़र विक्षिप्त कर देता है
सारी संवेदनाओं को
छिन्न-भिन्न कर देता है
जीते जी मानवीय इक़छाओं को
नरक में ला खड़ा करता है

क्यूंकि
इस सफ़र का ना कोई
..... आदि है
..... ना अंत

गुन्जन
१४/९/११

5 comments:

  1. क्यूंकि
    इस सफ़र का ना कोई
    ..... आदि है
    ..... ना अंत..... बहुत ही अच्छी..... आप हर बार कुछ नया और गहन विचार ही रचना पिरोती है......

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  2. सुन्दर एवं भावपूर्ण .....

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  3. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ......

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  4. अच्छे भाव,
    सुन्दर प्रस्तुति|

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