Thursday, 13 October 2011
अब तो जागो ..... मेरी प्यारी धरणी
कितनी सरलता से खुद को धरा बना लिया
और उसको जलता सूरज
कोई शक नहीं कि तुम कोमल धरणी हो
.... और वो सूर्य
पर जलती तो हमेशा से धरती ही आई है ना
सूरज कबसे जलने लगा भला
पुरुष रूप है ना....
अपना ताप तो दिखायेगा ही
बिन बात के धरा को तो वो जलाएगा ही
समंदर में डूबने का सिर्फ दिखावा करता है वो
आँखों से आँसू भला कभी छलके हैं उसके
प्यारी धरती
वो कहीं नहीं जाता
एक तरफ तुमसे नजरें चुराता है
तो दूसरी तरफ जाके किसी और के
गले लग जाता है
विश्वास करना अच्छी बता है
पर अन्धविश्वास .. ना - ना
कभी नहीं
जागो - जागो अब तो जागो
..... मेरी प्यारी धरणी
गुंजन
११/१०/११
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बहुत खूब ! सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिवयक्ति....
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
वाह ...बहुत बढि़या ।
ReplyDeleteकल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
ReplyDeleteसुंदर भावों का अच्छा समन्वय ।
ReplyDeleteसुन्दर भाव... सुन्दर शब्द्संयोजन/रचना...
ReplyDeleteसादर बधाइयां.
विश्वास करना अच्छी बता है
ReplyDeleteपर अन्धविश्वास .. ना - ना
सत्य है!
बहुत गहन बात ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर व गहन भावाभिव्यक्ति .... साधुवाद
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