जब जानते हो
तब जाते ही क्यूँ हो ..?
क्या मेरा बिलखना
तुम्हारे रिसते घावों को सहलाता है
अगर ऐसा है.....
तो ज़िन्दगी भर रोने को तैयार हूँ मैं
जो मंज़ूर हो .. तो आ जाओ
आओ तो पहले ...
फिर जाने की बात करना
थोड़ा मरहम मेरे ह्रदय पर भी लगा जाना
जो तुम्हारे तलवों में
रिसते घावों की वजह से
खुद भी टीसने लगा है
बोलो आओगे क्या .. ?
गुँजन
२२/१०/११
अपनी पूरी ज़िन्दगी हम बोझिल बना लेते हैं यह अधिकार देकर , यह स्वीकृति देकर कि यदि तुम चाहो तो ताउम्र रोऊँ !.... क्यूँ ? प्यार के लिए यह ज़रूरी नहीं और इकतरफे ख्याल में इसकी ज़रूरत क्या ... प्यार करनेवाला ऐसा चाहेगा नहीं , और जिसे कोई फर्क नहीं पड़ता उसके लिए ऐसी कुर्बानी ! अन्दर सुलगना बेहतर है....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteसमर्पण की पराकाष्ठा ..
ReplyDeleteachcha likha hai dard ko jaga deti aisi rachanaye..........
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