Thursday 3 November 2011

माँ भी मैं ..... प्रिया भी मैं



जो तुम सो जाओगे
तो मुझे कविता कौन कहेगा
तुमसे ही तो जन्मी हूँ .. मैं
जो तुम हो तो हूँ .. मैं
अजन्ता की गुफाओं में भी
तुमने मुझे बुद्ध रूप में देखा
हमेशा से जानती हूँ
ऐसा सिर्फ तुम ही कर सकते थे

माँ भी मैं
प्रिया भी मैं
बालक भी मैं
रम्भा भी मैं
हह .... और कितने रूप में ढालोगे मुझे
और कितने रंगों से रंगोगे मुझे
तुम सी बन जाऊँ
.... अब बस इतना ही चाहूँ
तुम में ही कहीं खो जाऊँ
.... हाँ बस इतना ही चाहूँ

क्या अपना-आप दोगे मुझे
क्या अपनी बाँहों में लोगे मुझे

.....
२२/१०/११

10 comments:

  1. वाह ...बहुत खूब कहा ।

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  2. stree kee yahi to khoobi hai ... kai roopon mein dhal jati hai

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  3. बहुत ही खूबसूरती से भावो को शब्दों में उकेरा है आपने......

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  4. क्या अपना-आप दोगे मुझे
    क्या अपनी बाँहों में लोगे मुझे
    बहुत खूब.....!!

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  5. बेहतरीन ... प्रेम और समर्पण के भाव ... लाजवाब ...

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  6. बहुत सुंदर..नारी एक ज़न्म में कितने जीवन जी लेती हैं..लाज़वाब अभिव्यक्ति..

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  7. अनेक रूपों में ढली होती है नारी ... सुन्दर प्रस्तुति

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  8. वाह क्या खूब भावो को पिरोया है।

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