Thursday, 4 August 2011

मैं ....... सिर्फ मैं



दूज के चाँद की
सांवली-सी रौशनी में
अधखुली खिड़की पर
सर को टिकाये
______

क्या तुम्हें दिखती हूँ
कभी - कहीं
मैं....... सिर्फ मैं

गुंजन
४/८/११

3 comments:

  1. कितनी मासूम चाह है

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  2. ओह्ह्ह !!! बहुत सुन्दर और प्यारी सी कविता...

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