Thursday, 18 August 2011
महीन शीशे से बने.......कुछ अधूरे-से सपने
जो कभी राह में तुम मिल जाओ
तो दूंगी तुम्हें..... वो सपने
जो कभी मेरे न हो सके
शायद तुम्हारे पंखों से लिपट के
उन्हें एक नया आसमान मिल सके
जिसके आयामों को नापते-नापते
उन्हें अपने सपने होने पर भरोसा हो सके
हाँ दूंगी तुम्हें.......मैं वो सपने
जो कभी मेरे ना हो सके
पर ध्यान रहे दोस्त
________
वो सपने हैं मेरे.........वो सपने हैं मेरे
महीन शीशे से बने
कुछ अधूरे-से सपने
ठिठुरते , कंपकपाते
माज़ी की इक गर्म रजाई में लिपटे हुए
ख़ाली बिस्तर की नर्म-नाज़ुक सिलवटों में
मेरे अकेलेपन के साथी
गुंजन
१७/८/११
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शायद तुम्हारे पंखों से लिपट के
ReplyDeleteउन्हें एक नया आसमान मिल सके
जिसके आयामों को नापते-नापते
उन्हें अपने सपने होने पर भरोसा हो सके
bharosa khud ka hi hota hai, vaham doosron ka ...
वो सपने हैं मेरे.........वो सपने हैं मेरे
ReplyDeleteमहीन शीशे से बने
कुछ अधूरे-से सपने
ठिठुरते , कंपकपाते
माज़ी की इक गर्म रजाई में लिपटे हुए
ख़ाली बिस्तर की नर्म-नाज़ुक सिलवटों में
मेरे अकेलेपन के साथी ...
बहुत बढ़िया ....सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
बहुत ही खुबसूरत भावो से सजी रचना....
ReplyDeleteसपने बहुत खूबसूरत होते है अक्सर...
ReplyDeleteइन्हें मन में ही रहने देना ..
क्योंकि जिंदगी की सड़क पर महीन सपने चूर चूर हो जाते है ..अक्सर !!