Tuesday, 16 August 2011

अन्ना और गांधीजी .........




घर में कैद रहने की नहीं
अब बाहर निकलने की बारी है
ये बारिश नहीं
भारत माता की आँखों का पानी है

जिसे पोंछने आये 'अन्ना'
और उनसे जुड़े कुछ अपने जैसे
जो थे पहले अपने ही हाथों
अपने घर में कैदी जैसे

तो क्यूँ न अब हम भी
इन जंजीरों से आज़ाद हों
इस लिजलिजी सरकार के खिलाफ
हम भी 'अन्ना' के साथ हों

इस भ्रषटाचार रूपी अंग्रेजों का
अपने देश से करें बहिष्कार
बनकर वही 'सुभाष' और 'गाँधी'
स्थापित करें इक नयी सरकार

'गांधीजी' ने इक नारा दिया था
"अंग्रेजों भारत छोड़ो "
अब 'अन्ना' ने इक नारा दिया है
"भ्रषटाचार से मुहँ मोड़ो"

बदलाव तभी आयंगे
जब हम कुछ कर दिखने का
अपने अंदर "अन्ना" और "गांधीजी"
जैसा इक सिरफिरा-सा जूनून लायेंगे

गुंजन
१६/८/११

5 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
    गुंजन जी ये तो अन्ना की आंधी है जन जन का असली गांधी है ....

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  2. सुन्दर प्रस्तुति..........बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ...बहुत बढ़िया लिखती हैं ,आप..........बधाई स्वीकारें .

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  3. अकेला जिया ...तो क्या जिया
    ख्यालों के काटों में ....
    मानों कोई ...सूरज मुखी का तड़पना //

    कभी मेरे ब्लॉग पर भी आये ...निमंत्रण हैं

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  4. अन्ना की मांग सही, तरीका गलत.

    आपकी रचना अच्छी है।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.........

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