Wednesday, 17 August 2011
गरम रजाई को ओढ़े हुए.....कुछ ठिठुरते हुए सपने
कुछ सपने धुन्द की रजाई
ओढ़े हुए ही रहना चाहते हैं
सुबह कब अपनी मरमरी बाहें फैलाये आ जाती है
औ रात कब नशीली हो जाती है
वो नहीं देखना चाहते
बल्कि वो इस मरमरी सुबह और नशीली रात को
जीना ही नहीं चाहते
क्यूंकि वो अपने ख्यालों से इतर
होना ही नहीं चाहते
__________
हाँ कुछ ऐसे ही हैं मेरे सपने
धुन्द की पतली-झीनी चादर को नहीं
बल्कि ख्यालों की
इक नरम, मुलायम
और गरम रजाई को ओढ़े हुए
जिसे न वो धो सकें और
न ही उसे किसी आज की अनचाही
खुरदुरी अलगनी पर सुखा सकें
ओह्ह ये सपने ...... मेरे प्यारे सपने
गुंजन
१७/८/११
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lagta hai ek bachpan , lagta hai ek pyaar ... siharta hai mann , swabhawik sapne aankhon mein umadne lagte hain...
ReplyDeleteवाह गज़ब का बिम्ब प्रयोग किया है और सीधा दिल मे उतरती है रचना।
ReplyDeletesapne man me baste hai , man me hi jeete hai ..
ReplyDeleteस्वप्नों का विशद चित्रण, धन्यवाद.
ReplyDeletewaah Gunjan ji...
ReplyDeleteaisa man aur ye sundar swapn... bas aur kya... :)
आपके यह सपने यूँ ही सजे रहे...कभी भी आपके ख्यालों से इतर ना हों .....गुंजन .
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