तेरी रूह से...मेरी रूह तक आती
ये सदा एक दिन मुझको
मुझसे फ़ना कर ले जाएगी
तू देखता ही रह जायेगा
उस पल को तब
जब न मैं होंगी
न मेरी आवाज़ तुझ तक जाएगी
ये बुतपरस्ती तेरी
ओ मेरे हमनवाज़
एक दिन तुझसे
मेरे होने का गुमां भी
छीन कर ले जाएगी
फारिग होकर ढूंढेगा
इस दुनिया में 'गुंजन' को जब
तब मेरी राख ही बस
तेरे दोनों हाथों में आएगी
तेरी रूह से....मेरी रूह तक आती
ये सदा एक दिन मुझको
मुझसे फ़ना कर ले जाएगी
गुंजन
12/5/2011
Thrusday
यह क्या मायूसी क्यों छाई है आपकी इस नज्म में , अच्छा लगा मुबारक हो
ReplyDeleteit is too gud i like it a lot
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील कुमारजी ...मन कुछ ख़राब था...सो ऐसे ही लिख दिया
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