Thursday, 9 June 2011
कल की रात कुछ अजीब सी थी.........
कल की रात कुछ अजीब सी थी
दूर कहीं आवाज़ हुई थी
चाँद और तारों के टूटने की
एक आह भी सुनी थी
बहकी हुई हवा और जुगनू की
रजनीगंधा के मरे हुए फूलों की
खुशबू की चीत्कार भी
गूंजी थी- जेहन में.....
पर लगा कि नहीं ये तो बस
मेरा एक भ्रम है
जो हर रात उभरता है
मेरे अंतर्मन में
जिसको पीती हूँ रोज़
आंसुओं के रूप में.....
खुली आँखों से पनीले
सपनों को देखते हुए
गुज़रे हुए वक़्त की
दहलीज़ में झांकते हुए
मुट्ठीभर ख्वाइशों को
अंतस में संजोते हुए.....
वाकई कल की रात कुछ अजीब सी थी
गुंजन
9/6/11
Thrusday
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सत्य कहा आपने यह आपका भ्रम ही है सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
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