Tuesday, 14 June 2011

क्यूँ.... ?



क्यूँ आखिर......क्यूँ ?
ज़िन्दगी हरदम इतनी
हैरां रहा करती है
काटती रहती है
आपने आपको बिन बात
नदी के किनारे की तरह
पानी में उठती लहरों सी
बिन बात के डोला करती है
क्यूँ तेरी ख्वाइश करती है
क्यूँ तेरी तमन्ना करती है
बिन बात के हंसती है
बिन बात के रोती है
क्यूँ आखिर......क्यूँ
ज़िन्दगी इतनी परेशां
रहा करती है ?

.......गुंजन

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