Monday, 4 July 2011

आ जा .......



तू चाहे कहीं भी रहे
तेरा दर्द यहीं है
हसरत नहीं,
अरमान नहीं,
ख्वाइश भी नहीं है
प्यार और बस प्यार है
इसके सिवा कुछ भी नहीं है
आ जा
आ जा
कि अब तो बीत गयीं
कितनी सदियाँ
बोझिल आँखें भी
कब से सोयी नहीं हैं
तू आएगा, तू आएगा
मुझको न जाने क्यूँ यकीं है
जबकि जानती हूँ
कि तुझे मुझसे प्यार नहीं है.....

गुंजन
4/7/11
Monday

4 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण रचना...बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  2. The poem is really sweet and the last line makes me so sentimental !
    I liked it very much !
    Thanks Gunjan and all the very best for your bright future !!!

    Keep it up !

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  3. आज ब्लॉग पर आपका कमेन्ट बहुत प्यारा लगा मुझे...सीधा दिल से. आभारी हूँ...शुक्रिया.

    आपका ब्लॉग पढ़ा...खूबसूरत कवितायें हैं. प्यार की उलझी पेचीदगियों को सुलझाती कुछ भली सी, सिंपल सी बातें. लिखती रहिये...अच्छा लगता है.

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  4. aaj phli baar aapke blog pe aaya hun , achha laga yahan pr aake,Sunder rachnaon se susajjti behad khoobsurat blog...
    takniki kaarno se roman main apni pratikirya vyakt kr raha hun jiske liye mujhe khed hai ,
    Shubh kaamnaye aapko.

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