Thursday, 28 July 2011

यादों के सीले दरख़्त......



यादों के पन्ने अक्सर सील जाते हैं
नमी जो बहुत गहरे तक उतर जाती है
शायद इसलिए भी
______

बारिश में अक्सर हर सुखी चीज़ भी सील जाती है
फिर ये तो मन है
जो हमेशा ही भीगा रहता है
सिली हुई यादों के दरख्तों से

खिलती कलियों से लेकर
धरती में धंसी गहरी जड़ों तक.......

गुंजन
२८/७/११

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई ....

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  2. गुंजन जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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  3. bejod... kripya rachnaaon ko unlock ker dijiye aur mujhe rasprabha@gmail.com per soochit karen

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  4. आदरणीय गुंजन जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  5. बहुत देर से आपकी कविताओ को पढ़ रहा हूँ .. मन भीग सा गया है और गले में कुछ अटक सा गया है .. क्या लिख देती हो दोस्त.. शब्द सिर्फ शब्द नहीं रहकर कुछ और भी बन गए है , मन पर एक कोलाज़ सा बन गया है .. बहुत कुछ कहने का मन है , अभी तो इतना ही ..

    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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