यादों के पन्ने अक्सर सील जाते हैं
नमी जो बहुत गहरे तक उतर जाती है
शायद इसलिए भी
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बारिश में अक्सर हर सुखी चीज़ भी सील जाती है
फिर ये तो मन है
जो हमेशा ही भीगा रहता है
सिली हुई यादों के दरख्तों से
खिलती कलियों से लेकर
धरती में धंसी गहरी जड़ों तक.......
गुंजन
२८/७/११
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई ....
ReplyDeleteगुंजन जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
bejod... kripya rachnaaon ko unlock ker dijiye aur mujhe rasprabha@gmail.com per soochit karen
ReplyDeleteआदरणीय गुंजन जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteसंजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत देर से आपकी कविताओ को पढ़ रहा हूँ .. मन भीग सा गया है और गले में कुछ अटक सा गया है .. क्या लिख देती हो दोस्त.. शब्द सिर्फ शब्द नहीं रहकर कुछ और भी बन गए है , मन पर एक कोलाज़ सा बन गया है .. बहुत कुछ कहने का मन है , अभी तो इतना ही ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html