तुम बिन ....... कृष्ण
द्वापर से लेकर आज तक
कितने युग बीते
पर तुमने मुझे
जाना ही नहीं
.............
कैसा लगता होगा
तुम्हें - मेरे बिन
इसकी कल्पना
कभी मेरे अधरों पर
तृप्त स्मित बन नहीं खेली
एक कच्चा-सा लाल धागा
तिर आता है मेरी आँखों की
कोरों पर....
अधूरी-सी सिसकी
गांठ बन उभर आती है
मेरे कंठ में....
यादों का स्पंदन
निह्श्वांस कर जाता है
मेरे जीवन को .......
क्यूंकि -
पूर्ण तो मैं भी नहीं हूँ
तुम बिन - मेरे कृष्ण
गुंजन
१४/७/११
क्या बात है। बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्यूंकि
पूर्ण तो मैं भी नहीं हूं
तुम बिन -मेरे कृष्ण