Thursday, 1 September 2011

रंगरेज़ हो तुम



तुम्हें देखा है मैंने
कि वो हो तुम
तुम्हीं हो.....
कोई और नहीं
क्यूँ सोचते हो तुम
कि तुम मुझे याद नहीं
मेरी जान हो तुम
मेरा अरमान हो तुम
मेरी रग रग में बिखरी
गर्म खून की
हर इक बूँद हो तुम
मेरी नीम आँखों में
लहराता समंदर हो तुम
मेरी महकती हुई
सांसों का हर इक
आता-जाता
क्षण हो तुम
मेरी बलखाती बाहों की
लहरों में उतराता
जीवन संगीत हो तुम
मेरी रातों की सरगोशियों
में खिलता हुआ
इक ख्वाब हो तुम
मेरे अंतहीन आसमान में
नित नया रूप लेते
आयाम हो तुम
मेरे ब्रह्माण्ड के
रचयिता हो तुम
मेरी गति हो तुम
मेरी प्रकर्ति हो तुम
मेरे जीवन की धुरी
मेरा गीत हो तुम
मेरा अपना
मेरा सपना
मेरा धैर्य
मेरा इंतज़ार हो तुम
हाँ.....हाँ जानम

मेरी ज़िन्दगी के
हर पल के
हर रंग के
हर रूप के
'रंगरेज़' हो.... 'तुम'

गुंजन
१/९/११

7 comments:

  1. वाह बहुत ही मनोहारी रचना।

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  2. "...मेरा धैर्य
    मेरा इंतज़ार हो तुम...."

    मन को लुभाती कविता।

    सादर

    --------
    मुक्त होना चाहता हूँ

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  3. मेरी ज़िन्दगी के
    हर पल के
    हर रंग के
    हर रूप के
    'रंगरेज़' हो.... 'तुम'..बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..

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  4. behatreen...!!sundar shabdon mein palii ,manmohan bhaavon se sajii rachna

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  5. मेरी ज़िन्दगी के
    हर पल के
    हर रंग के
    हर रूप के
    'रंगरेज़' हो.... 'तुम'
    दिल के भावों को अच्छा रुप दिया।
    बहुत अच्छी रचना है।

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  6. क्या बात है...
    उत्तम भावाभियक्ति....
    सादर...

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