Thursday, 15 September 2011
मैं बोनसाई नहीं ..... कदम्ब हूँ !!
तो आपको क्या लगता है...?
क्या मेरे शब्दों में
मेरे भावों में वो गहराई है..?
निश्चय ही - मेरे शब्द बोनसाई नहीं हैं
क्यूंकि भावों की कोम्पलें
नित नवीन प्रफुल्लित होती हैं ..
जडें भी बहुत गहरे तक हैं कहीं -
शायद इसलिए भी
_________
अब छांट भी तो नहीं सकती
वर्ना छिपे दर्द टीसने लगेंगे..
मैं चिनार नहीं
.........कदम्ब हूँ !!
जिसने अपने आगोश में
प्रेम की पराकाष्ठता को लिया था
इसलिए मैं बोनसाई बन ही नहीं सकती
बनना भी नहीं चाहती
निह्श्चय ही प्रेम विराट है
और द्रड़ भी.....
....... अब भी कोई शक है क्या ?
गुन्जन
१४/९/११
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निह्श्चय ही प्रेम विराट है
ReplyDeleteअब छांट भी तो नहीं सकती
ReplyDeleteवर्ना छिपे दर्द टीसने लगेंगे..
मैं चिनार नहीं
.........कदम्ब हूँ !!
waah behtreen chintan, umda bahvo se bhari marmsparshi prastuti............aap itna deep kaise likh leti hai ........bahut umda prastuti
मैं चिनार नहीं
ReplyDelete.........कदम्ब हूँ !!
जिसने अपने आगोश में
प्रेम की पराकाष्ठता को लिया था
इसलिए मैं बोनसाई बन ही नहीं सकती
बनना भी नहीं चाहती
बेहतरीन।
सादर
bahut hi sundar bhav hai...me chginar nahi kadamb hu...haan prem tahi to hai.....
ReplyDeleteबहुत गहन और खूबसूरत भाव .
ReplyDeleteबोनसाई होकर तो मैं शो पीस हो जाऊँगी
ReplyDeleteऔर मैं तो पुरवा हूँ ...
बहुत ही गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteगहन भावों से परीपूर्ण बेहतरीन अभिव्यक्ति... समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत गहन और खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.... .
ReplyDeleteजिसने अपने आगोश में
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठता को लिया था
इसलिए मैं बोनसाई बन ही नहीं सकती
बनना भी नहीं चाहती
...सच में प्रेम विराट है, वाह बोनसाई हो ही नहीं सकता..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
बहुत ही खुबसूरत भाव हैं .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबोनसाई भी खूबसूरत होता है..लोग उसको भी सराहते हैं पर यदि किसी भी पेड़ से पूछा जाए तो बोनसाई बनने को कोई तैयार नहीं होगा .सशक्त भावाभिव्यक्ति !!
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