तन-मन के साज़ पर .... रंग, धुन और नृत्य
जानते हो ...
बीती रात गए
मन के आँचल में
अनगिनित ख्वाब
सजाये मैंने
तुम्हारे लिए .......
कभी इधर
कभी उधर
न जाने कितने रंग बिखरे
मैंने अपनी चाहत के
पर कोई भी रंग
तुम्हें ना भाया
क्यूँ ...... ?
______
आज मन
फिर उदास है
लगा की कोई
धुन गुनगुनाऊं
अपने तन के साज़ पे
कोई गीत लहराऊं
शायद
इसे ही सुन
तुम आ जाओ
मेरे साथ दो कदम चलकर
मेरी खामोशियों को
सुन पाओ ....
समझ पाओ .....
बोलो आओगे क्या ...... ?
गुन्जन
२८/९/११
सुन्दर अभिव्यक्ति.............!!
ReplyDeleteकविता अर्थ लिए हुए ....मन को छू गई
ReplyDeleteआज मन
ReplyDeleteफिर उदास है
लगा की कोई
धुन गुनगुनाऊं
अपने तन के साज़ पे
कोई गीत लहराऊं .........
सुंदर अभिव्यक्ति, मन को छू गई उपरोक्त रचना ,
आभार.
जानती हूँ यह मन की कमजोरी है
ReplyDelete.... है तो है ....
आओगे तो कुछ कह लूँगी
न भी आए तो क्या
मुझे ख़्वाबों का रुख मोड़ना आता है
खुबसूरत और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteकोमल से एहसास ...
ReplyDeleteमन के भावो को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में प्रसतुत किता है आपने.....
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर एहसास ।
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