Saturday, 24 September 2011

" प्यार "



हाँ देव
प्यार वही है
जो इस
पल - छिन
बदलती
दुनिया ने
मुझमें देखा ..
जो तुम्हारे
आमूल - चूल
अस्तित्व ने
मुझसे पाया ..
क्यूंकि -
मैं ही तो हूँ
प्यार
______

इस धरा पर
सदियों से
ठहरी हुई -
मूर्त रूप में
सिर्फ
..... मैं ही हूँ
" प्यार "

गुंजन
१८/९/११

11 comments:

  1. सिर्फ
    ..... मैं ही हूँ
    " प्यार "
    सुंदर प्रेममयी रचना ....

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  2. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....

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  3. बहुत सुन्दर भावमयी रचना।

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  4. खुबसूरत एहसास ...

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  5. इस धरा पर
    सदियों से
    ठहरी हुई -
    मूर्त रूप में
    सिर्फ
    ..... मैं ही हूँ
    " प्यार " सुन्दर भाव जिन्हें बहुत ही खुबसूरत शब्दों में ढाला है आपने....

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  6. bahut khub.......pyar se pyar kii abhivyakti...

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  7. हाँ देव
    प्यार वही है

    ........................!!!

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  8. जो खुद में प्यार हो जाए, उसका हर अंदाज जुदा होता है

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  9. प्यार को संज्ञा बना दिया ...क्रिया से ऊपर उठा दिया ...सुन्दर]

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