Sunday, 4 September 2011
अथ-अकथ सारा
मुझको जानना
मुझको समझना
गर इतना आसान होता
तो तुम "मैं" ना हो जाते देव ?
मैं तो इक व्योम हूँ
इक निरंकार हूँ
मैं ही आकार
मैं ही प्रकार हूँ
मैं ही शब्द
मैं ही निःशब्द हूँ
मैं ही अनंत
मैं ही मरुस्थल हूँ
मैं ही गृह
मैं ही नक्षत्र हूँ
मुझमें समाई है ये स्रष्टि सारी
मुझमें बसी है ये दुनिया तुम्हारी
क्यूँ चाहते हो मुझसे दूर जाना ?
क्यूँ चाहते हो मैं तुम्हें भूल जाऊँ ?
तुमसे ही तो है ये ब्रह्माण्ड सारा
तुमसे ही तो है मेरा अथ-अकथ सारा
तुम हो तो मैं हूँ
जो तुम नहीं तो मैं भी नहीं
कहीं भी नहीं______
गुंजन
५/९/११
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aatmaa-parmaatmaa kii schchaai evam daarshniktaa ko parilakshit kartii sundar rachna .
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
waah... beahtareen... ati-sundar...
ReplyDeletesach hamesha sundar nahi hota... parantu is tarah varnit kiya jaae to khoobsoorat ho jata hai...
bahut sunder
ReplyDeleteसूफ़िआना खयाल!
ReplyDeleteतुमसे ही तो है मेरा अथ-अकथ सारा
ReplyDeleteतुम हो तो मैं हूँ
जो तुम नहीं तो मैं भी नहीं
कहीं भी नहीं______बहुत गहरे भावो से रची प्रभावशाली रचना....
एक गूढ़ विषय कि रचना , समझने में समय लगेगा
ReplyDeleteगहन किन्तु सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletesampoornta kee seema
ReplyDeleteशायद तेरा अस्तित्व ही मेरी पहचान है
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