Wednesday, 14 September 2011
ख्वाइशों की पौध
इमरोज़-अमृता
सोनी-महिवाल
हीर-राँझा
एडवर्ड-सिम्सन
विश्व - प्रसिद्ध
इन प्रेमी जोड़ों के बीज जो आप अपने
बंजर खेतों में बोने चली हो
उसमें एक बीज मेरे नाम का भी रोप लेना- "रश्मि दी"
भले ही मैं अकेली सही
पर खुद पर इंतना यकीं है
कि आपके सपनों के खेतों का
उत्क्रष्ट वृक्ष .... "मैं ही बनूँगी"
________
जब भी कोई पौध डिगने लगेगी अपने पथ से
हाड़ तोड़ बर्फीली हवाओं के डर से
तब मैं माँ बन उसे अपने आँचल में छिपा लूंगी
जब भी कोई झूमती-बलखाती बेल
मुरझाने लगेगी..तपते सूरज की गर्मी से
तब मैं पिता बन उसे अपनी छावं में ले लूंगी.....
कुछ भी - कैसे भी करके.. उन्हें
वख्त से पहले विदा ना होने दूंगी
(जैसा कि इतिहास गवाह है)
जो स्वप्न आपने अपनी आँखों में देखा है
उसके निशां ना मैं खोने दूंगी ......
बस इतनी सी गुज़ारिश है...
जो न्याय खुद के साथ न कर पाई
वो शायद अगले जन्म में कर पाऊँ
अब बस इतनी सी ही ख्वाइश है....
गुन्जन
१४/९/११
(मेरी ये कविता आदरणीय "रश्मि दी" को समर्पित है )
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आत्मविश्वास दर्शाती हुई रचना बहुत खुबसूरत ......
ReplyDeleteबेहद उत्तम भावो का समन्वय्।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर अभिवयक्ति....
ReplyDeleteजिसके अन्दर वृक्ष बनने की क्षमता हो, विश्वास हो- उसके साथ क्या अगला , पिछला जन्म ? हर पल सार्थक है देवदार की तरह
ReplyDeletebahut..........bahut sundar
ReplyDeleteक्या बात कही अपने....लाजवाब!!
ReplyDeleterashmi didi , sabse puraane blogger me se ek hai . aur har kisi ki madad bhi kati hai , aapne un par ye kavita likh kar bahut acchi dedication di hai .. aapko saadhuwaad au dhanywaad.
ReplyDeletevijay
aur ha nazm to acchi hi hai , hamesha ki tarah , ek alag taste me hai , lekin acchi hai .
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