Tuesday 20 September 2011

घमंडी यादें



प्रश्न तो वहीँ खड़ा है ना
यक्ष की भांति .... अनुत्तरित
ये यादें होती ही क्यूँ हैं .. ?
किसी के जाने के साथ
ये भी क्यूँ नहीं चली जातीं
क्यूँ नहीं जीने देती ये हमें
क्या रात ... क्या दिन .. !!
नहीं है हमें इनकी ज़रूरत
आखिर क्यूँ नहीं समझतीं .. ?
जब भी बेशर्म बन धकेलते हैं
हम इन्हें दरवाजे से बाहर
ये उतनी ही द्रुत गति से
पलट वार करती हैं
क्या दुसरे ... क्या तीसरे ... और क्या चौथे
जिस पहर भी आँख खुले
ये मुहँ बाये सामने खड़ी होती हैं
क्यूँ......?

___________

कहा ना ... चली जाओ
जिसके साथ तुम आयीं थीं
उसी के पास .. वापिस
तुम्हारे ना होने पर भी
मैं अकेली नहीं ......

समझना होगा तुम्हें
मेरा "मैं" मेरे पास है
और उसे कोई नहीं छीन सकता मुझसे
स्वयं ... तुम भी नहीं

....घमंडी यादें !!!!!!!

गुन्जन
२०/९/११

15 comments:

  1. यादें हैं की जाने का नाम ही नहीं लेतीं ... अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब लिखा है ...।

    ReplyDelete
  4. जब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....

    ReplyDelete
  5. भावों की सुंदर अभिव्यक्ति .....

    ReplyDelete
  6. क्या दुसरे ... क्या तीसरे ... और क्या चौथे
    जिस पहर भी आँख खुले
    ये मुहँ बाये सामने खड़ी होती हैं
    क्यूँ......?

    ....सच है यादें कहाँ जाती हैं, चाहे कितनी भी कोशिश क्यूँ न करें. इन्हें तो ढोना ही होता है उम्र भर...बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  7. मुखोटे यादों के उतार नहीं सकते ,.???
    घमंडी यादों को पछाड़ नहीं सकते .........

    ReplyDelete
  8. यादों के चरित्र का खूब चित्रण किया है,आपने...बधाई

    ReplyDelete
  9. खूब अच्छी लगीं आपकी घमंडी यादें..!!

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन चित्रण ...

    ReplyDelete
  11. कहा ना ... चली जाओ
    जिसके साथ तुम आयीं थीं
    उसी के पास .. वापिस
    तुम्हारे ना होने पर भी
    मैं अकेली नहीं ......

    बढ़िया अभिव्यक्ति... सादर...

    ReplyDelete
  12. वाह....क्या बात कही...कितने मनमोहक ढंग से कही...

    ReplyDelete
  13. यादो के साथ वार्तालाप ....बिल्कुल ही नया अंदाज.
    सुंदर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete