Wednesday 28 September 2011

तन-मन के साज़ पर .... रंग, धुन और नृत्य



जानते हो ...
बीती रात गए
मन के आँचल में
अनगिनित ख्वाब
सजाये मैंने
तुम्हारे लिए .......
कभी इधर
कभी उधर
न जाने कितने रंग बिखरे
मैंने अपनी चाहत के
पर कोई भी रंग
तुम्हें ना भाया
क्यूँ ...... ?
______

आज मन
फिर उदास है
लगा की कोई
धुन गुनगुनाऊं
अपने तन के साज़ पे
कोई गीत लहराऊं
शायद
इसे ही सुन
तुम आ जाओ
मेरे साथ दो कदम चलकर
मेरी खामोशियों को
सुन पाओ ....
समझ पाओ .....

बोलो आओगे क्या ...... ?

गुन्जन
२८/९/११

8 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति.............!!

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  2. कविता अर्थ लिए हुए ....मन को छू गई

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  3. आज मन
    फिर उदास है
    लगा की कोई
    धुन गुनगुनाऊं
    अपने तन के साज़ पे
    कोई गीत लहराऊं .........
    सुंदर अभिव्यक्ति, मन को छू गई उपरोक्त रचना ,
    आभार.

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  4. जानती हूँ यह मन की कमजोरी है
    .... है तो है ....
    आओगे तो कुछ कह लूँगी
    न भी आए तो क्या
    मुझे ख़्वाबों का रुख मोड़ना आता है

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  5. खुबसूरत और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..

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  6. मन के भावो को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में प्रसतुत किता है आपने.....

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  7. वाह! बहुत सुंदर एहसास ।

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